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जहां से उठाया फरसा, वहीं पर छोड़ा-परशुराम अभिनेता की कलायात्रा

परशुराम अभिनेता पं.कैलाश नाथ बाजपेई ने लिया अभिनय से सन्यास
– भद्रकाली देवी मंदिर भदरस (घाटमपुर) में किया अंतिम बार अभिनय

परशुरामी के जनक शिवली के पंडित शिवदत्त लाल अग्निहोत्री को अपना गुरु बनाया था।

कानपुर,04 अप्रैल।2023। अपने समय के श्रेष्ठ परशुराम अभिनेता रहे पंडित कैलाश नाथ बाजपेई ने 85 वर्ष की अवस्था में बीते शुक्रवार की रात ग्राम भदरस स्थित माता भद्रकाली देवी मंदिर में अंतिम बार अभिनय किया। जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग लीला पंडाल में उपस्थित रहे।
मूलरूप से घाटमपुर तहसील क्षेत्र के ग्राम तेजपुर निवासी पंडित कैलाश नाथ बाजपेई का भदरस गांव में ननिहाल है। वह अपने ननिहाल में ही पले बढ़े, और यहीं से उन्होंने 21 वर्ष की अवस्था में परशुरामी का अभिनय शुरू किया था। इसके बाद उनकी नौकरी लग गई जो कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (कानपुर) से वरिष्ठ लिपिक के पद पर रिटायर हुए।
इस दौरान उन्होंने अपनी अभिनय कला को उत्तरोत्तर निखार दिया। और जल्दी ही वह परशुराम अभिनेताओं की प्रथम पंक्ति में गिने जाने लगे। उन्होंने बताया कि अपने अभिनय काल के दौरान उन्होंने डेढ़ हजार से अधिक मंचो पर कला का प्रदर्शन किया है।

कई प्रदेशों में किया कला का प्रदर्शन मनवाया लोहा

उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, बिहार तथा कई अन्य प्रांतों में भी अपने अभिनय का सिक्का जमाया।
स्थानीय लोग बताते हैं कि पंडित कैलाश नाथ बाजपेई की अभिनय शैली से प्रभावित होकर प्रदेश सरकार ने उनको सरस्वती पुरस्कार से सम्मानित किया था। पंडित कैलाश नाथ बताते हैं कि उन्होंने परशुरामी के जनक पंडित शिवदत्त लाल अग्निहोत्री को अपना गुरु बनाया था।
बताया कि स्वर्गीय राय देवी प्रसाद “पूर्ण जी” की नगरी भदरस की प्राचीन रामलीला में उन्होंने प्रथम बार अभिनय शुरू किया था। जबकि, वहीं से उन्होंने अभिनय समाप्त भी किया। बताया कि उन्होंने तकरीबन 10 वर्ष पूर्व अभिनय करना बंद कर दिया था। लेकिन उनके प्रशंसकों खासकर भदरस गांव के लोगों ने उनकी परशुरामी देखने और अपना फरसा जहां से उठाया था वहीं पर रखने की पेशकश की थी। इससे प्रभावित होकर उन्होंने 85 वर्ष की उम्र होते हुए भी मंच पर सफल अभिनय किया।
ग्राम प्रधान जय नारायण यादव, पूतन सिंह चौहान, छेदा सिंह चंदेल, सुनील अग्निहोत्री और प्रदीप कुमार पांडेय आदि ने बताया कि पंडित जी का अभिनय देखकर ऐसा महसूस ही नहीं हो रहा था कि मंच पर 85 वर्ष का वृद्ध अभिनय कर रहा है। बताया कि उन्होंने चार घंटे से भी अधिक समय तक परशुरामी की, जो एक रिकॉर्ड है।

ऐतिहासिक है भदरस की रामलीला

… ऐतिहासिक है भदरस गांव की 121 वर्ष प्राचीन रामलीला
घाटमपुर (कानपुर)। तहसील क्षेत्र के भदरस गांव में रामलीला की नींव वर्ष 1903 में गांव निवासी कवि एवं साहित्यकार वैरिस्टर स्वर्गीय राय देवी प्रसाद पूर्ण जी ने डाली थी।
होली के दिन से शुरू होकर लगातार 5 दिन तक रामलीला का मंचन चलता है। चौथे दिन सीता स्वयंवर (धनुषयज्ञ) लीला के मध्य में खेला जाने वाला प्रहलाद नाटक पूरे प्रदेश में सिर्फ भदरस गांव में ही होता है। लीला के अधिकांश पात्र गांव के ही होते हैं। जिनकी तैयारी महीनों पहले शुरू कर दी जाती है।
परशुराम अभिनेता पंडित कैलाशनथ बाजपेई बताते हैं कि उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत यहीं से की थी। रामलीला के मध्य में मंचित होने वाले प्रहलाद नाटक के संवाद एवं कवित्त राय देवी प्रसाद पूर्ण द्वारा ही रचित हैं। जबकि लीला के मध्य में उनके कई भजनों को भी गाया जाता है। भदरस गांव की रामलीला सरकार द्वारा रजिस्टर्ड भी है।

गीतेश अग्निहोत्री/सुनाद न्यूज

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