सुनाद न्यूज-आज का विचार
आओ जाने दास्तान ए होली गंगामेला, कानपुर
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हटिया कानपुर शहर की सांस्कृतिक गतिविधियो का केन्द्र रहा है | हटिया शब्द हाट अर्थात बाजार से है ,हटिया मे सन् १८७४ -७५ शहर के कलेक्टर डब्लू एच हालसी ने हाट के लिए पुख्ता चबूतरे बनवाये थे | हटिया से ही होली गंगा मेला की परम्परा का उदभव है | कहा जाता है कि सन् १९४२ मे राष्ट्रीय आन्दोलन चरम पर था और हटिया का नवजीवन पुस्तकालय इसका केन्द्र था | उन दिनो शहर मे सात दिनो की होली मनायी जाती थी जिसे तत्कालीन कलेक्टर ने रोक दिया | जो कांग्रेसियो व क्रान्तिकारियो को नागवार गुजरा और उन्होने पार्क मे तिरंगा फहराकर होलिका दहन किया व भारत माता की जय आदि नारो के साथ फागुनी फाग की मस्ती मे डूब गये | घटना की जानकारी होने पर कलेक्टर ने दल बल के साथ पार्क को घेर लिया और ४३ लोगो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया | गिरफ्तार लोगो मे बुद्धलाल मेहरोत्रा, गुलाबचन्द्र सेठ , हमीद खाँ , इकबालकृष्ण कपूर , बालकृष्ण शर्मा नवीन , शिवनरायन टंडन, रघुवरदयाल भट्ट, जागेश्वर त्रिवेदी, विश्वनाथ मेहरोत्रा आदि प्रमुख थे | गिरफ्तारियो के विरोध मे बाजार बंद रहे हड़ताल रही | आखिर मे प्रशासन को झुकना पड़ा और सभी गिरफ्तार लोगो को रिहा कर दिया गया | उस दिन अनुराधा नक्षत्र था रिहा होते ही सभी पुन: होली की मस्ती मे दूने रंग व उत्साह से रंग गये और बाद दोपहर गंगा स्नान कर स्वच्छ वस्त्रो को धारण कर आपस मे मिले | आज भी हटिया से इस अवसर पर रंगो का ठेला जुलूस निकलता है और शाम को गंगा तट पर सरसैयाघाट मे गंगामेला भी लगता है |
सभी कनपुरियो को होली गंगा मेला की शुभकामनाएँ …
साभार-अनूप शुक्ला